
( देवेन्द्र कुमार बहल )
‘अभिनव इमरोज़ ’ की स्थापना जनवरी वर्ष 2012 में हुई थी, आज हम अपनी यात्रा के चौदहवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं । हमारा यह सफ़र निहायत क़ामयाब रहा । हम अपने मिशन में सही रास्ते पर हैं । उभरती हुई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं और नामचीन स्थापित लेखकों के मार्ग-दर्शन एवं उनकी रचनाओं से पत्रिका को समृद्ध भी बना रहे हैं । तेरह वर्षों में करीबन 41 विशेषांक भी निकाल चुके हैं । हमारी प्रस्तुतियाँ प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत भी होती रही हैं । मैं अपने अनुभवों से अभिनंदित हूँ और अपने ख़ुश-क़िस्मत होने के अहसास को आत्मसात किए हुए हूँ । 29 जनवरी 2025, मैं अपने चौरासीवें वर्ष में पदार्पण कर रहा हूँ । अब तो ‘अभिनव इमरोज़’ एवं ‘साहित्य नंदनी’ मेरी जीवन-रेखा का ही पर्याय बन चुकी हैं, दिन का ख़याल और रात का ख़्वाब ।
सकारात्मकता से ओत-प्रोत रहता हूँ, ‘जीवेम शरदः शतम्’ की महत्वाकांक्षा मेरे संस्कारों में व्याप्त है । उसी अटल दृष्टिकोण के दृष्टिगत मेरे पास और पन्द्रह वर्ष हिंदी साहित्य सेवा का जज़्बा बचा हुआ है– जिसे मैं अपने आदरणीय लेखकों और अतीव प्रिय पाठकों को समर्पित करता हूँ ।
भविष्य में भी– आशा है कि मेरा शिवसंकल्प निश्चल रहेगा और मैं नवोदितों के उत्साहवर्धन का निमित्त बना रहूँगा और स्थापित क़लमकारों के आशीर्वाद से साहित्य के स्तरीय उत्थान के लिए प्रयासरत रहूँगा । एक वर्ग से मार्ग-दर्शन और दूसरे को उत्थानात्मक परिवेश मुहैया करवाना हमारे अनुशासन का अंश हमेशा बना रहेगा । सही तो है- एक वर्ग से तवक़्को और दूसरे को तवज्जोह हमारे अनुशासन का अंग है । विशेषांक, प्रतियोगिताएँ और गोष्ठियों का आयोजन भी नए प्रोजेक्ट्स में शामिल है ।
मौलिक चिंतन और उत्कृष्ट परिष्कृत साहित्य आपको वर्ष 2040 तक उपलब्ध होता रहना चाहिए = आगे जो प्रारब्ध, विधाता की इच्छा... चरैवेति चरैवेति...
रगों में दौड़ने फिरने के, हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है
ग़ालिब
( देवेन्द्र कुमार बहल )
संस्थापक संपादक